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Natural Herble Pure product of uttarakhand

गंदरायणी Gandrayani

MRP : 200.00

Gandrayani grows in slow moving streams, damp meadows, forest gullies in rocky substrata of Western Himalayas from Kashmir to Uttaranchal at an altitude of 2,700-3,400m. Dry roots yield essential oil (1.3 per cent), resin and valerianic acid and several furocoumarins such as angelicin, bergapten, xanthotoxin and umbelliferene,” says Organic Products from Uttaranchal, published by the Uttarakhand Organic Board.

The roots of the plant are pungent, aromatic, diaphoretic and diuretic. It increases appetite and combined with tonics it is given in typhoid conditions, bronchitis, flatulence, colic and pain in stomach. Roots are also used in the preparation of gin and liqueurs known as bitters. Gandrayani is used in Uttaranchali cuisine as a flavouring agent in vegetables and daals.”

Gandrayani is used to cure stomach disorders. In remote villages, it is used to cure stomach aches—the roots are powdered and boiled in water. It also has digestive properties, so is used in cooking dals.” Unlike in cities, where dals are available in the split or polished form, whole dals are consumed in most villages. Whole dals are difficult to digest and can cause flatulence. That’s why when dals are boiled a generous piece of gandrayani is added. It not only adds flavour, but also has digestive properties.

Alternatively, it can be used also for tadka (tempering). Here, the root is powdered and is added to the tadka along with cumin seeds or mustard or garam masala.

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Gandrayani
गंदरायण, गंदरायणी, गंदरायन या छिप्पी नामों से जाना जाने वाला हिमालयी मसाला ठेठ पहाड़ी खान-पान का अहम मसाला है. राजमा, झोई (कढ़ी) और गहत, अरहर व भट के डुबके (फाणु) में इसका दखल व्यंजन की खुश्बू और जायके को कई गुना बढ़ा देता है. गंदरायणी को हिंदी में चोरा, आयुर्वेद में चोरक कहा जाता है. हिमाचली इसे चमचोरा या चौरू बुलाते हैं तो कश्मीरी चोहारे. इसका अंग्रेजी नाम एन्जेलिका है. गंदरायण व हिमालयन एन्जेलिका इसके वाणिज्यिक नाम हैं. खुशबूदार एपिएसी (Apiaceae) परिवार का यह पौधा एन्जेलिका ग्लोका (Angelica Glauca) के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है.

गंदरायण के पौधे की जड़ों व प्रकंद को छाया में सुखाकर इसका इस्तेमाल मसाले के तौर पर किया जाता है. इसकी खुशबू और जायका तो अच्छा होता ही है, साथ ही इसमें मौजूद तत्व पाचन के लिए भी लाभकारी होते हैं. इसका मसाला पाचन में मदद करने के साथ ही एसिडिटी को भी ख़त्म करता है. इसके अलावा यह कब्ज को दूर करता है और ह्रदय व लीवर को मजबूत बनाता है.

अपने औषधीय गुणों के कारण इसका इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है. इसकी जड़ों का पाउडर बनाकर पानी में मिलाकर पीने से पेटदर्द में फायदा मिलता है. दुर्गम पहाड़ी इलाकों में, जहाँ दवा उपलब्ध नहीं होती, इसका इस्तेमाल बच्चों को पेटदर्द से छुटकारा दिलाने के लिए खूब किया जाता है. पेटदर्द के अलावा यह सरदर्द, बुखार और टायफायड की भी रामबाण औषधि मानी जाती है. गाय की दुग्ध क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. महक से भरा होने की वजह से इसका इस्तेमाल धूप, अगरबत्ती में तथा अन्य तरीकों से घरों को सुवासित करने में भी किया जाता है.

इसकी जड़ों में 15% तक तेल की मात्र होती है. इस तेल में एन्जेलिक एसिड, वेलेटिक एसिड और एजेलिसीन नामका रेजीन पाया जाता है.

Weight.04 kg

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